धूप में जलते श्रमिक: बुंदेलखंड के खेतों में काम करते मजदूरों की कहानी
गर्मी और खेतिहर मजदूरों की चुनौती
गर्मियों में खेतों की मिट्टी कड़ी हो जाती है, सिंचाई की व्यवस्था अक्सर सीमित होती है और मजदूरों को सूरज की सीधी किरणों के नीचे लंबा समय काम करना पड़ता है। इनमें से अधिकतर श्रमिक गरीब परिवारों से आते हैं, जिनके पास न तो छांव में आराम करने की सुविधा होती है और न ही पर्याप्त जल या स्वास्थ्य सेवाएं।
• पसीने से तर-बतर कपड़े, सिर पर गीला गमछा या कपड़ा बाँध कर
• हाथों में फावड़ा या दरांती, और पैरों में फटी हुई चप्पलें
• एक तांबे या स्टील की बोतल, जिसमें गुनगुना पानी अक्सर खत्म हो जाता है दोपहर तक
ये मजदूर हर दिन खेतों को सींचते हैं ताकि देश की थाली में अनाज बना रहे।
एक उदाहरण: ललिता देवी की कहानी – चित्रकूट, बुंदेलखंड
ललिता देवी, 38 वर्षीय महिला मजदूर हैं जो चित्रकूट के पास एक गाँव में रहती हैं। उनका पति बीमार रहता है, और दो बच्चे स्कूल जाते हैं। ललिता सुबह 5 बजे उठकर बकरी का दूध निकालती हैं, बच्चों का टिफिन बनाती हैं और फिर 6:30 बजे खेत में पहुँच जाती हैं।
गर्मी में भी वह दोपहर 2 बजे तक लगातार खेतों में निराई-गुड़ाई करती हैं। जब उनसे पूछा गया कि इतनी गर्मी में कैसे काम कर लेती हैं, तो मुस्कुराते हुए बोलीं –
“अगर हम नहीं करेंगे, तो बच्चों को खाना कौन खिलाएगा?”
उनकी दिहाड़ी है करीब ₹250 प्रतिदिन। कभी-कभी जब खेत में काम नहीं मिलता, तो गांव में किसी के घर में साफ-सफाई का काम करके ₹100-₹150 कमा लेती हैं।
आजीविका और संघर्ष
इन मजदूरों की ज़िंदगी सिर्फ गर्मी में काम करने तक सीमित नहीं है। उनके पास स्थायी रोजगार नहीं होता। खेती का सीजन खत्म होने पर वे शहरों की ओर पलायन करते हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, शिक्षा का अभाव और आर्थिक अस्थिरता उनके जीवन को लगातार संकट में डालती है।
समाधान की दिशा में कदम
• छाया और जल की व्यवस्था: खेतों में श्रमिकों के लिए अस्थायी छायादार शेड और पानी की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए।
• स्थानीय रोजगार: ग्रामीण क्षेत्रों में प्रोसेसिंग यूनिट, जैसे कि बुंदेलखंडी एग्री द्वारा शुरू की गई इकाइयाँ, मजदूरों को साल भर का काम दे सकती हैं।
• महिला मजदूरों को प्रशिक्षण: महिलाओं को आधुनिक खेती, सिलाई, मसाला प्रोसेसिंग आदि का प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।
• सरकारी योजनाओं का सही क्रियान्वयन: मनरेगा जैसी योजनाओं का उपयोग खेती से जुड़े कार्यों में किया जाए।
निष्कर्ष
गर्मियों में खेतों में काम करने वाले श्रमिक सिर्फ मजदूर नहीं, बल्कि देश के असली अन्नदाता हैं। बुंदेलखंड जैसे क्षेत्रों में उनकी मेहनत को सम्मान देना, उनकी जिंदगी को बेहतर बनाना हम सभी की ज़िम्मेदारी है। जैसे ललिता देवी और हजारों अन्य मजदूर अपनी सीमाओं से लड़कर हर दिन खेतों को सींचते हैं, वैसे ही हमें भी उनके भविष्य को संवारने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।