ग्राम्य भारत की देन: बिना पालिश वाली दालें


एक देसी मिट्टी के बर्तन में रंग-बिरंगी बिना पालिश की दालें, जो एक जूट की चटाई पर रखी हैं और पृष्ठभूमि में भूरे रंग की सादगी है। ऊपर लिखा है: "ग्रामीण भारत का उपहार – बिना पालिश की दालें।


बिना पालिश वाली दालें – असली पोषण, असली स्वाद

शहरों में जो दालें हम खाते हैं, वे अक्सर चमकदार दिखती हैं,
लेकिन उनकी चमक के पीछे छिपा होता है पोषण का अभाव।
प्राकृतिक पौष्टिकता को निकालकर जो दालें पेश की जाती हैं,
वो स्वाद और सेहत — दोनों में समझौता करती हैं।

🌾 बिना पालिश वाली देशी दालें
जो सीधे गाँवों की मिट्टी और किसानों की मेहनत से आती हैं —
वही हैं सेहतमंद जीवन के लिए असली विकल्प।

एक जूट की बुनावट वाले कटोरे में बिना पालिश की मिली-जुली दालें (अरहर और मूंग), जो देसी ग्रामीण पृष्ठभूमि में लकड़ी की सतह और प्राकृतिक तत्वों के साथ रखी गई हैं। पास में जूट की रस्सी, पत्ते और मिट्टी के बर्तन रखे हैं, जो देसी वातावरण को दर्शाते हैं।



पालिश की गई बनाम बिना पालिश दालें

पहलूपालिश की गई दालबिना पालिश दाल
दिखने मेंज़्यादा चमकदारथोड़ी रूखी, पर असली रंगत
पोषणपोषण घट जाता हैफाइबर, प्रोटीन और मिनरल्स से भरपूर
प्रसंस्करणमशीनों से अधिक प्रोसेसन्यूनतम प्रोसेसिंग, प्राकृतिक रूप में
स्वादकृत्रिम रूप से सुधारा गयादेसी, गहराई और मिट्टी की खुशबू के साथ

बिना पालिश दालें क्यों चुनें?

फाइबर बरकरार – बेहतर पाचन और ऊर्जा
असली प्रोटीन – संपूर्ण पोषण के लिए
कोई रसायन नहीं – शुद्ध और सुरक्षित
किसानों को समर्थन – सीधा लाभ गाँवों को


🌿 Bundelkhandi Agri का मिशन

हम दालें उसी रूप में देते हैं, जैसे खेत से आई हैं
ना चमक, ना बनावटीपन।
क्योंकि हमारा मानना है:

"असली सुंदरता भीतर होती है, चमक में नहीं।"


👉 तो अगली बार दाल खरीदें, तो पैकिंग नहीं — परंपरा और पोषण को चुनें।

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