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ग्राम्य भारत की देन: बिना पालिश वाली दालें

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बिना पालिश वाली दालें – असली पोषण, असली स्वाद शहरों में जो दालें हम खाते हैं, वे अक्सर चमकदार दिखती हैं, लेकिन उनकी चमक के पीछे छिपा होता है पोषण का अभाव। प्राकृतिक पौष्टिकता को निकालकर जो दालें पेश की जाती हैं, वो स्वाद और सेहत — दोनों में समझौता करती हैं। 🌾 बिना पालिश वाली देशी दालें — जो सीधे गाँवों की मिट्टी और किसानों की मेहनत से आती हैं — वही हैं सेहतमंद जीवन के लिए असली विकल्प। पालिश की गई बनाम बिना पालिश दालें पहलू पालिश की गई दाल बिना पालिश दाल दिखने में ज़्यादा चमकदार थोड़ी रूखी, पर असली रंगत पोषण पोषण घट जाता है फाइबर, प्रोटीन और मिनरल्स से भरपूर प्रसंस्करण मशीनों से अधिक प्रोसेस न्यूनतम प्रोसेसिंग, प्राकृतिक रूप में स्वाद कृत्रिम रूप से सुधारा गया देसी, गहराई और मिट्टी की खुशबू के साथ बिना पालिश दालें क्यों चुनें? ✅ फाइबर बरकरार – बेहतर पाचन और ऊर्जा ✅ असली प्रोटीन – संपूर्ण पोषण के लिए ✅ कोई रसायन नहीं – शुद्ध और सुरक्षित ✅ किसानों को समर्थन – सीधा लाभ गाँवों को 🌿 Bundelkhandi Agri का मिशन हम दालें उसी रूप में देते हैं, जैसे खेत से आई हैं – ना ...

स्वस्थ जीवन के लिए पहली सीढ़ी – प्राकृतिक उत्पादों को अपनाएं

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 स्वस्थ जीवन के लिए पहली सीढ़ी – प्राकृतिक उत्पादों को अपनाएं आज की तेज़-तर्रार ज़िंदगी में हम अक्सर खाने की क्वालिटी से समझौता कर लेते हैं – बस जल्दी बना, सस्ता हो और दिखने में अच्छा लगे। लेकिन क्या वाकई हम जानते हैं कि हम क्या खा रहे हैं? स्वस्थ जीवन की शुरुआत वहीं से होती है – जहाँ हम ये तय करते हैं कि हमारी थाली में क्या होगा। और इसका सबसे सीधा रास्ता है – प्राकृतिक उत्पादों को अपनाना। प्राकृतिक उत्पाद क्या होते हैं? • बिना रासायनिक खादों के उगाए गए अनाज, दालें और मसाले • बिना पॉलिश और मिलावट के • प्राकृतिक प्रसंस्करण, जैसे धूप में सुखाना, हाथ से छांटना, लकड़ी की घानी में तेल निकालना • कोई प्रिज़रवेटिव या आर्टिफिशियल फ्लेवर नहीं क्यों ज़रूरी हैं ये बदलाव? • बीमारियों से बचाव – कैंसर, डायबिटीज़, हाई BP जैसी बीमारियाँ बहुत हद तक खानपान से जुड़ी हैं • इम्यूनिटी मजबूत होती है • बच्चों की ग्रोथ और बुजुर्गों की सेहत के लिए फायदेमंद • किसानों और पर्यावरण – दोनों को लाभ बुंदेलखंडी  सिर्फ प्रोडक्ट नहीं, एक स्वास्थ्य आंदोलन जब आप हमारे उत्पाद चुनते है...

अरहर दाल,हर भारतीय थाली की जान

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अरहर दाल,हर भारतीय थाली की जान है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है – वही दाल जब जैविक तरीके से उगाई जाए, तो उसका स्वाद और सेहत दोनों कैसे बदल जाते हैं? बुंदेलखंडी  अरहर दाल उगाई जाती है प्राकृतिक खेती से – बिना रासायनिक खाद, बिना कीटनाशकों, और बिना पॉलिश। हर दाने में मिट्टी की खुशबू, परंपरा की ताकत, और सेहत की गारंटी छुपी होती है। अरहर दाल के सेहतमंद फायदे • प्रोटीन से भरपूर – शाकाहारी डाइट के लिए बेस्ट सोर्स • फाइबर युक्त – पाचन तंत्र मजबूत करता है • आयरन और पोटैशियम – एनर्जी बढ़ाए और दिल को रखे स्वस्थ • लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स – डायबिटिक लोगों के लिए फायदेमंद प्राकृतिक खेती से फर्क साफ है • रासायनिक अवशेष नहीं • मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है • स्वाद अधिक गहरा और शुद्ध • किसानों की सेहत और मुनाफा दोनों सुरक्षित हमारा वादा – खेत से थाली तक शुद्धता हमारी अरहर दाल सिर्फ एक प्रोडक्ट नहीं, एक सोच है – एक प्रयास है स्वस्थ भारत और सशक्त किसान की ओर। जब आप इसे खरीदते हैं, आप एक बदलाव का हिस्सा बनते हैं। क्या आपने आज अपनी थाली में सेहत परोसी है? अगर नहीं, तो अब व...

सीधा सा जवाब – देशी और शुद्ध खानपान।

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आज भी गाँवों में कई 70-80 साल के बुज़ुर्ग ऐसे मिलते हैं जो बिना दवा के बिल्कुल फिट हैं – सुबह खेत में काम, शाम को घर का खाना, और रात को सुकून की नींद। इनकी सेहत का राज़ क्या है? सीधा सा जवाब – देशी और शुद्ध खानपान। बुज़ुर्गों की सेहतमंद आदतें जो हमें सीखनी चाहिए: • घरेलू, सीधा खाना: बिना मिलावट और बिना प्रोसेस्ड फूड • देशी दालें और अनाज: बिना पॉलिश, सीधे खेत से • मसाले भी मेडिसिन: हल्दी, अजवाइन, हींग, सौंठ का रोज़ाना सेवन • मौसमी सब्ज़ियाँ: जो मौसम दे, वही थाली में • घरेलू देसी घी और सरसों का तेल: केमिकल फ्री और न्यूट्रिशन से भरपूर देशी खानपान के फायदे • पाचन मजबूत • इम्यून सिस्टम एक्टिव • उम्र बढ़ने की गति धीमी • दवाओं पर निर्भरता कम • मानसिक और शारीरिक ऊर्जा ज़्यादा Bundelkhandi Agri – वही देशी परंपरा, आज के स्वाद में हम जो दालें, और मसाले, तेल आपको देते हैं – वो उसी परंपरा से आते हैं, जिसमें हमारे बुज़ुर्ग पले-बढ़े। इसलिए ये सिर्फ प्रोडक्ट्स नहीं, एक विरासत हैं – सेहत की और संतुलित जीवनशैली की। आप भी वो रास्ता चुनिए, जो पीढ़ियों से आज़माया...

स्वस्थ जीवन के लिए प्राकृतिक उत्पादों का महत्व – एक पूरी तरह से स्वदेशी यात्रा

आजकल की जीवनशैली में स्वस्थ आहार और स्वस्थ जीवन के लिए प्राकृतिक उत्पादों का सेवन बेहद जरूरी हो गया है। रासायनिक खाद्य पदार्थों और प्रदूषण से बचने के लिए हमें प्राकृतिक और शुद्ध उत्पादों को अपनी ज़िन्दगी में शामिल करना चाहिए। प्राकृतिक उत्पाद न केवल हमें स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं, बल्कि यह हमारे जीवन को सतत और शुद्ध बनाते हैं। बुंदेलखंडी एग्री के देशी उत्पाद, जैसे शुद्ध दालें, ताजे मसाले, और तिल का तेल, आपको शुद्धता और स्वाद का एक अनूठा अनुभव प्रदान करते हैं। इन प्राकृतिक उत्पादों का सेवन न केवल सेहत के लिए फायदेमंद होता है, बल्कि यह पारंपरिक खेती और स्थानीय उत्पादकों को भी बढ़ावा देता है। आइए जानते हैं कि कैसे प्राकृतिक उत्पादों का सेवन हमारे जीवन को बेहतर बना सकता है: 1. रासायनिक मुक्त दालें और मसाले – स्वास्थ्य के लिए आवश्यक आजकल अधिकांश दालें और मसाले रासायनिक प्रक्रियाओं से गुजरते हैं, जो हमारे शरीर के लिए हानिकारक हो सकते हैं। लेकिन बुंदेलखंडी की देशी दालें और मसाले पूरी तरह से प्राकृतिक होते हैं। इनका सेवन न केवल आपको स्वास्थ्य लाभ देता है, बल्कि यह प्राकृतिक खेती का भी सम...

देशी मूंग दाल – एक सुपरफूड

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  मूंग दाल भारतीय रसोई की सबसे हल्की, लेकिन सबसे ताकतवर दालों में से एक है। खासकर जब वो हो बिना पालिश, देशी और प्राकृतिक खेती से उगाई गई, तो उसका असर सिर्फ पेट पर नहीं, पूरी सेहत पर दिखता है। देशी मूंग दाल – एक सुपरफूड • डाइजेशन फ्रेंडली – मूंग दाल जल्दी पचती है और पेट को आराम देती है • हाई प्रोटीन, लो फैट – वज़न कम करने वालों के लिए बेस्ट • इम्यूनिटी बूस्टर – ज़िंक, आयरन और मैग्नीशियम से भरपूर • डायबिटिक-फ्रेंडली – लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स • स्किन और हेयर हेल्थ – मूंग में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स त्वचा और बालों के लिए भी फायदेमंद हैं                       क्या फर्क है देशी और मिलावटी मूंग में? फ़ीचर देशी मूंग मिलावटी/पालिश मूंग रंग हल्का हरा, नैचुरल ज़्यादा चमकदार, रंगीन स्वाद मिट्टी की खुशबू वाला, देसी फीका और नकली स्वाद पोषण 100% बरकरार पोषण कम, सिर्फ दिखावा खेती रासायन मुक्त, जैविक केमिकल्स से भरी Bundelkhandi Agri की मूंग दाल – सेहत की गारंट हमारी मूंग दाल किसी भी पॉलिशिंग या रासायनिक...

कृषि में परंपराओं और आधुनिकता का समागम – एक नई दिशा की ओर

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कृषि हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा रही है, और यह हमेशा से हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा रही है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में कृषि में बदलाव आया है, जहां परंपरागत खेती और आधुनिक तकनीकों का मिलाजुला प्रयोग हो रहा है। Bundelkhandi Agri जैसी कंपनियाँ आज प्राकृतिक और पारंपरिक तरीकों के साथ-साथ आधुनिक कृषि तकनीकों का इस्तेमाल कर रही हैं, ताकि उत्पादन में वृद्धि हो, लेकिन साथ ही साथ पारिस्थितिकी का भी ध्यान रखा जा सके। आज हम जानते हैं कि कैसे कृषि में परंपराओं और आधुनिकता का समागम हमारे कृषि क्षेत्र को और अधिक सशक्त बना सकता है। 1. परंपरागत खेती की ताकत – शुद्धता और पोषण परंपरागत खेती में मुख्यतः प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि देशी बीज, प्राकृतिक खाद और स्थानीय जलस्रोत। यह न केवल मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखता है, बल्कि प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को भी सशक्त करता है। • Bundelkhandi Agri के उत्पाद देशी बीजों से उगाए जाते हैं और इसमें रासायनिक खादों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, जिससे ये स्वास्थ्य के लिए पूरी तरह से सुरक्षित होते हैं। 2. आधुनिक कृषि तकनीकें – उन्नति और उ...

Bundelkhandi Desi Pulses – Taste and Health in Every Bite

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When it comes to health and taste, desi (native) pulses always top the list. And when these pulses are grown in the rich soil of Bundelkhand, their value multiplies. Bundelkhandi pulses – like whole moong, arhar (toor), chana, and masoor – are not just flavorful, they are power-packed with nutrition. Grown using natural farming methods, free from harmful chemicals and pesticides, they retain their full nutritional value and taste just the way nature intended. A Treasure of Health • High in Protein: Excellent source of plant-based protein, especially for vegetarians. • Rich in Fiber: Supports digestion and gut health. • Low Glycemic Index: Helps manage diabetes and weight. • Unpolished & Pure: No chemical polishing, no adulteration – just real goodness. Flavors That Take You Back Home When Bundelkhandi pulses are cooked, they fill your kitchen with a warm, nostalgic aroma – a reminder of village kitchens and wholesome home-cooked meals. It’s not just food, it’s a fee...

बुंदेलखंडी देशी दालें: स्वाद भी, सेहत भी

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  यह रहा ब्लॉग का ड्राफ्ट – आप चाहें तो इसमें अपनी फोटो, किसान की कहानी या किसी दाल की पैकिंग की तस्वीर भी जोड़ सकते हैं: बुंदेलखंडी देशी दालें: स्वाद भी, सेहत भी जब बात होती है सेहत और स्वाद की, तो ज़िक्र आता है देशी दालों का – और अगर वो दालें बुंदेलखंड की मिट्टी से उपजी हों, तो बात ही कुछ और होती है। बुंदेलखंडी दालें, जैसे कि साबुत मूंग, अरहर, चना और मसूर, न सिर्फ स्वाद में भरपूर हैं, बल्कि ये आपके शरीर के लिए भी एक नेचुरल टॉनिक की तरह काम करती हैं। ये दालें रासायनिक खादों और कीटनाशकों से दूर, प्राकृतिक खेती के जरिए उगाई जाती हैं – जिससे इनमें पौष्टिकता पूरी तरह सुरक्षित रहती है। सेहत का खजाना • हाई प्रोटीन: देशी दालें शुद्ध प्रोटीन का स्रोत हैं – खासतौर पर शाकाहारी लोगों के लिए। • फाइबर से भरपूर: पाचन तंत्र को दुरुस्त रखने के लिए जरूरी है। • लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स: डायबिटीज़ और वजन नियंत्रण में मददगार। • कोई मिलावट नहीं: बिना पॉलिश की दालें, बिना केमिकल, सिर्फ असली स्वाद। स्वाद जो बचपन की याद दिलाए जब आप बुंदेलखंडी दालों को पकाते हैं, तो किचन में जो खुशबू उठती है ...

रासायनिक खादों से दूर, मिट्टी को लौटाएं उसकी असली ताकत

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“मिट्टी अगर ज़िंदा है, तो अन्न भी ज़िंदा है।” आज की खेती में सबसे बड़ी चुनौती है – मिट्टी की गिरती हुई गुणवत्ता। लगातार रासायनिक खादों और कीटनाशकों के इस्तेमाल ने ज़मीन को कमजोर और निर्जीव बना दिया है। लेकिन अब वक्त है प्राकृतिक खेती की ओर लौटने का – जहां मिट्टी को उसका जीवन, उसका संतुलन वापस मिले। रासायनिक खादों का प्रभाव • मिट्टी की जैविक संरचना नष्ट हो जाती है • लाभदायक कीट और जीवाणु मर जाते हैं • ज़्यादा उत्पादन के चक्कर में लंबे समय में उपज गिरने लगती है • किसानों की लागत बढ़ती है, मुनाफा घटता है प्राकृतिक खेती से मिट्टी में जान लौटती है प्राकृतिक खेती में हम उपयोग करते हैं – • जैविक खाद (गोबर, वर्मी कंपोस्ट) • जीवामृत और घनजीवामृत • देशी बीज और फसल चक्र (Crop rotation) • मल्चिंग और हरी खादें इन उपायों से मिट्टी में सूक्ष्म जीवाणु (microorganisms) पनपते हैं, जो पोषक तत्वों को मिट्टी में बनाए रखते हैं और फसल को प्राकृतिक तरीके से मज़बूत बनाते हैं। हमारी ज़िम्मेदारी – मिट्टी बचाओ, जीवन बचाओ Bundelkhandi Agri सिर्फ उत्पाद नहीं बेचता, हम मिट्टी की सेवा ...

Discover why healthy, living soil is essential for nutrient-rich food. Explore how soil biodiversity, organic farming, and sustainable practices impact food quality and human health.

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  One of the biggest threats to agriculture today is the declining health of our soil. Continuous use of chemical fertilizers and pesticides has made the land weak, lifeless, and dependent. It’s time to return to natural farming – a way to restore the soil’s original strength and balance. Impact of Chemical Fertilizers • Destroys the soil’s natural microbial ecosystem • Kills beneficial insects and organisms • Reduces long-term fertility despite short-term high yields • Increases farmers’ input costs but reduces profits How Natural Farming Revives the Soil Natural farming uses age-old, sustainable techniques like: • Organic manures (cow dung, vermi-compost) • Jeevamrit and Ghana Jeevamrit (natural bio-enhancers) • Desi (native) seeds and crop rotation • Mulching and green manures These practices support the growth of microorganisms that maintain soil health, enhance fertility, and improve crop resilience – all without chemicals. Our Responsibility – ...

धूप में जलते श्रमिक: बुंदेलखंड के खेतों में काम करते मजदूरों की कहानी

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भारत के बुंदेलखंड क्षेत्र में गर्मियों की धूप कुछ अलग ही चुनौती लेकर आती है। तापमान कई बार 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है, ज़मीन तपती है, और खेतों में काम करने वाले श्रमिक बिना किसी आधुनिक सुविधा के दिनभर पसीना बहाते हैं। उनके लिए गर्मी का मतलब है – मेहनत, धैर्य और जीवन यापन की जद्दोजहद। गर्मी और खेतिहर मजदूरों की चुनौती गर्मियों में खेतों की मिट्टी कड़ी हो जाती है, सिंचाई की व्यवस्था अक्सर सीमित होती है और मजदूरों को सूरज की सीधी किरणों के नीचे लंबा समय काम करना पड़ता है। इनमें से अधिकतर श्रमिक गरीब परिवारों से आते हैं, जिनके पास न तो छांव में आराम करने की सुविधा होती है और न ही पर्याप्त जल या स्वास्थ्य सेवाएं। • पसीने से तर-बतर कपड़े, सिर पर गीला गमछा या कपड़ा बाँध कर • हाथों में फावड़ा या दरांती, और पैरों में फटी हुई चप्पलें • एक तांबे या स्टील की बोतल, जिसमें गुनगुना पानी अक्सर खत्म हो जाता है दोपहर तक ये मजदूर हर दिन खेतों को सींचते हैं ताकि देश की थाली में अनाज बना रहे। एक उदाहरण: ललिता देवी की कहानी – चित्रकूट, बुंदेलखंड ललिता देवी, 38 वर्षीय महिला मजदूर हैं ज...

बुंदेलखंड में कृषि मजदूरों का उत्साहवर्धन: चुनौतियाँ, टीमवर्क और ‘बुंदेलखंडी एग्री’ की भूमिका

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बुंदेलखंड क्षेत्र, जो अपनी ऐतिहासिक विरासत और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है, आज कृषि के क्षेत्र में कई बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है। यहाँ की जलवायु, सीमित संसाधन और श्रमिकों की कमी खेती को कठिन बना देती है। इस सबके बावजूद, मेहनती किसान और खेतिहर मजदूर मिलकर इस भूमि को उपजाऊ बनाए रखने का कार्य कर रहे हैं। ‘बुंदेलखंडी एग्री’ इस प्रयास में उनका कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे रहा है। बुंदेलखंड में कृषि मजदूरों की भूमिका खेती केवल बीज बोने या फसल काटने का काम नहीं है, यह एक मेहनत, लगन और धैर्य से भरा हुआ पेशा है। बुंदेलखंड के खेतों में काम करने वाले मजदूर गर्मी, ठंडी और बारिश – हर मौसम में खेतों में डटे रहते हैं। उनका योगदान ही है जो आज भी इस क्षेत्र में दालें, मसाले, अनाज और तिलहन की उपज संभव हो रही है। मुख्य चुनौतियाँ 1. जल संकट – बारिश की अनियमितता और सिंचाई की सीमित सुविधा से फसलें प्रभावित होती हैं। 2. आधुनिक उपकरणों की कमी – पुराने तरीके से खेती करना श्रमिकों को अधिक परिश्रम में झोंक देता है। 3. स्थायी रोजगार की कमी – खेतिहर मजदूरों को साल भर काम नहीं मिलता, जिससे...